Corporate Debt Overhang: Indian Firms' Liabilities Eclipse Market Value Selling Off Won't Even Clear the Books

कंपनियों से बड़ा कंपनियों का कर्ज! बिक जाएंगी तो भी नहीं उतार सकेंगी 

भारतीय कॉर्पोरेट जगत में कर्ज का बोझ एक गंभीर समस्या बन चुकी है. हालांकि अच्छी बात ये है कि वित्त वर्ष 2021-25 के बीच कंपनियों की डेट ग्रोथ सिर्फ 2.9% रही है, जो आर्थिक मंदी और आंतरिक फंडिंग पर निर्भरता को दर्शाती है. बैंक ऑफ बड़ौदा की जून 2025 की रिपोर्ट 'डेट डायनामिक्स' के मुताबिक, गैर-वित्तीय कंपनियों का कुल कर्ज FY21 से FY25 के बीच सिर्फ 2.9% CAGR से बढ़ा. ये FY15-20 की 8.7% CAGR से काफी कम है, जो कि कंपनियों के आंतरिक संसाधनों (इंटरनल एक्रुअल्स) पर ज्यादा निर्भरता को दर्शाता है. 

Corporate Debt Overhang Indian Firms' Liabilities Eclipse Market Value Selling Off Won't Even Clear the Books


फिर भी, कई कंपनियां ऐसी हैं जहां कर्ज उनकी मार्केट कैप से कहीं ज्यादा है. ऐसी कंपनियों में निवेशकों का पैसा फंस सकता है. क्योंकि इनके डूबने का खतरा बढ़ जाता है. यहां पर मैं कुछ कंपनियों की लिस्ट दे रहा हूं, जिनका कर्ज कंपनी की कुल मार्केट कैप से भी ज्यादा है. यानी अगर कंपनी पूरी बिक भी जाए तो वो अपना कर्ज नहीं चुका सकती है. 

ये आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर कंपनियों का कर्ज उनकी मार्केट वैल्यूएशन से 1.1 से 12 गुना तक ज्यादा है. उदाहरण के तौर पर, 

वोडाफोन आइडिया की कर्ज संकट की कहानी सबसे चर्चित है. मार्च 2025 तक कंपनी पर 1.87 लाख करोड़ का कर्ज था, जिसमें एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) बकाया शामिल है. अब इस पर कर्ज बढ़कर 2.33 लाख करोड़ रुपये हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इसकी सुनवाई टाल दी, जिससे शेयरों में गिरावट आई. सरकार अब कंपनी में 50% हिस्सेदार है, 53,000 करोड़ के इक्विटी कन्वर्जन के बाद. फिर भी, नई 5,606 करोड़ की डिमांड आई है, जो कंपनी की भविष्य को लेकर सवाल खड़े करती है. 

सरकारी टेलीकॉम कंपनी MTNL के लिए खतरे की घंटी है. इसकी कुल देनदारी करीब 32,500 करोड़ रुपये है.  जबकि मार्केटकैप 2650 करोड़ रुपये ही है. सरकारी टेलीकॉम कंपनी होने के बावजूद, ये लगातार घाटे में डूबी हुई है, और डेट/EBITDA रेश्यो 412 के पार है. 

पावर सेक्टर की कंपनी GMR पावर पर कुल कर्ज 10,300 करोड़ रुपये है, जबकि मार्केट कैप 8,000 करोड़ रुपये से भी कम है.  होल्डिंग ग्रुप की पावर एसेट GMR एनर्जी ने हाल ही में 1,600 करोड़ का हाई-यील्ड डेट (14.85% ब्याज दर) जुटाया, लेकिन 4,400 करोड़ के एसेट सेल से बैलेंस शीट सुधारने की कोशिश कर रही है. 

इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां जैसे दिलीप बिल्डकॉन और PNC इंफ्रा को प्रोजेक्ट में देरी और कोविड के असर से जूझना पड़ा, जिससे कर्ज चुकाना मुश्किल हो गया. दिलीप बिल्डकॉन पर 9500 करोड़ रुपये का कर्ज है, जबकि मार्केट कैप 8,000 करोड़ रुपये के आस-पास है. PNC इंफ्रा पर 9,400 करोड़ रुपये का कर्ज है. जबकि मार्केट कैप 7,400 करोड़ रुपये है. 

कंपनियों से बड़ा, कंपनियों का कर्ज

Vodafone: 

Debt: 2.33 LK Cr 

Mcap: 95,000 Cr 


MTNL

Debt: 32,500 Cr 

Mcap: 2650 Cr 


GMR Power 

Debt: 10,300 Cr 

Mcap: 8000 Cr 


Rain Ind 

Debt: 9700 Cr 

Mcap: 4300 Cr 


Dilip Buildcon 

Debt: 9500 Cr 

Mcap: 8000 Cr 


PNC Infra 

Debt: 9400 Cr 

Mcap: 7400 Cr 


Uflex 

Debt: 8400 Cr 

Mcap: 3900 Cr 


Jain Irrigation 

Debt: 4000 Cr 

Mcap: 3650 Cr 


Coffee Day Ent 

Debt: 1400 Cr 

Mcap: 900 Cr


रेन इंडस्ट्रीज और यूफ्लेक्स जैसी मैन्युफैक्चरिंग फर्म्स में रॉ मैटेरियल कॉस्ट बढ़ने से मार्जिन सिकुड़ गए है. रेन इंडस्ट्रीज (Rain Ind.) पर भी 9,700 करोड़ रुपये का कर्ज है, मार्केट कैप इसकी आधी से भी कम 4,300 करोड़ रुपये है. Uflex पर 8,400 करोड़ रुपये का कर्ज है. जबपकि मार्केट कैप महज 3,900 करोड़ रुपये है. 

जैन इरिगेशन और कॉफी डे एंटरप्राइजेज छोटे स्तर पर हैं, लेकिन कर्ज का बोझ काफी बड़ा है. जैन इरिगेश का मार्केट कैप और उस पर जो कर्ज है तकरीबन बराबर है. कर्ज 4,000 करोड़ रुपये और मार्केट कैप 3,600 करोड़ रुपये के करीब, यानी कंपनी को अगर अपना कर्ज चुकाना हो तो खुद को बेचकर ही चुका सकती है. ये भारत की एक प्रमुख माइक्रो इरिगेशन और प्लास्टिक पाइप्स कंपनी है जो लंबे समय से कर्ज के बोझ तले दबी रही है.

2019 में कर्ज चुकाने में देरी के कारण कंपनी ने रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल (RP) प्रक्रिया शुरू की, जो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के स्ट्रेस्ड एसेट्स फ्रेमवर्क के तहत चली. इसकी रीस्ट्रक्चरिंग मार्च 2022 में लागू हुई, जिसने कंपनी को दिवालिया होने से बचाया, लेकिन 2025 तक भी ये कंपनी डेट मैनेजमेंट की चुनौतियों से जूझ रही है. 

कॉफी डे पर कर्ज 1,400 करोड़ रुपये है और मार्केट कैप महज 900 करोड़ रुपये है. भारतीय कॉफी चेन मार्केट में एक समय दिग्गज रही, लेकिन कर्ज के बोझ ने इसे संकट में डाल दिया. 2019 में फाउंडर वी.जी. सिद्धार्थ की आत्महत्या के बाद कंपनी ने आक्रामक कर्ज चुकाने की प्रक्रिया शुरू की. 2025 तक कुल कर्ज 1,400 करोड़ के आसपास था, जबकि मार्केट कैप मात्र 900 करोड़, लेकिन प्रमोटर मालविका हेगड़े की अगुवाई में एसेट रिजॉल्यूशन और सेटलमेंट्स से रिकवरी के संकेत मिले हैं.

इसलिए एक निवेशक होने के नाते आप जरूर इस बात पर गौर करें कि कंपनी की वित्तीय सेहत कैसी है. देखिए कंपनियों पर कर्ज होना बुरा नहीं है, लेकिन उन कंपनियों के पास उसे चुकाने की हैसियत है या नहीं, कर्ज को लेकर उसका इतिहास क्या रहा है, अगर वो कर्ज चुकाने में हर बार चूक जाती है, तो ये अच्छे संकेत नहीं है. निवेशकों को ऐसे स्टॉक्स से दूर रहना चाहिए, जब तक सुधार के संकेत न दिखें. कुल मिलाकर, यह संकट भारतीय कॉर्पोरेट्स के लिए सबक है कि कर्ज को विकास का इंजन न बनाएं, बल्कि संतुलित फाइनेंशियल मैनेजमेंट अपनाएं. 

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