From IPO Hype to Auction Nightmare: How Groww's Rally Trapped Short Sellers in a Rs 100 Cr Trap

Decoded: Groww की तेजी भांपने में कैसे चूक गए शॉर्ट सेलर्स! क्या मिला सबक

IPO से लेकर लिस्टिंग तक फिर शेयरों में आई रिकॉर्ड तेजी और मार्केट कैप के आसमान पर पहुंचने तक Groww लगातार खबरों में बना हुआ है. आजकल ये 30 लाख शेयरों के ऑक्शन की वजह से खबरों में है. जिसने उन ट्रेडर्स की नींद उड़ा दी, जो इसमें शॉर्ट करके बैठे थे. मोटा मुनाफे कमाने की आस में ट्रेडर्स को ये उम्मीद ही नहीं थी कि वो अपना हाथ इस कदर जला बैठेंगे. ये खबर तो आपको पता है, मैं आपको बस इतना बताने जा रहा हूं कि ये सबकुछ हुआ कैसे, जिसमें मैंने कोशिश की है कि बहुत आसान भाषा में आपको ये मामला समझा पाऊं. मैं इसमें बहुत ज्यादा आंकड़ेबाजी नहीं कर रहा हूं, आसान सी कहानी है. 
From IPO Hype to Auction Nightmare: How Groww's Rally Trapped Short Sellers in a Rs 100 Cr Trap


Groww में हुआ क्या 
Groww में फ्री फ्लोट शेयर केवल 7 परसेंट ही हैं, बाकी के 93 परसेंट शेयर IPO इन्वेस्टर्स के पास लॉक इन में पड़े हैं. ऐसे में जो कुछ भी होना है, इसी 7 परसेंट में होना है. अब ये काफी छोटी संख्या है. यानी बहुत कम शेयर ट्रेडिंग के लिए मौजूद हैं, ऐसे में छोटी सी भी डिमांड शेयर को नई ऊंचाई पर पहुंचा देती है, और ऐसा हुआ भी. शेयर ने 18 नवंबर, मंगलवार को 193.80 का रिकॉर्ड हाई छू लिया. कई ट्रेडर्स ने सोचा कि इतनी तेज रैली के बाद गिरावट आएगी, तो उन्होंने शॉर्ट सेलिंग की, ये सोचकर कि मोटा मुनाफा कमा लेंगे, लेकिन शायद किस्मत उनके साथ नहीं थी 

T+1 सेटलमेंट में प्राइस गिरने की बजाय और चढ़ गया, शॉर्ट सेलर्स फंस गए, उन्हें शेयरों को बेचने वाली ही कोई नहीं मिला तो डिलिवरी कहां से करते. नतीजा ये हुआ कि 18 नवंबर को NSE पर 30.08 लाख शेयर्स डिलीवरी डिफॉल्ट हो गए और ऑक्शन विंडो में चले गए. एक्सचेंज ने इन्हें खरीदने के लिए ऑक्शन में डाल दिया. 

शॉर्ट सेलिंग का खेल क्या है?
देखिए इंट्राडे शॉर्ट सेलिंग का मतलब होता है कि ट्रेडर्स पहले ही शेयरों को बेच देते हैं और फिर उसे बाद में खरीदते हैं, यानी उनके पास कोई वास्तविक शेयर नहीं होते. अगर ट्रेडर्स उन शेयरों को उस दिन नहीं खरीद पाता है, क्योंकि बाजार में शेयरों के ऊंचे भाव की वजह से सेलर्स ही नहीं है, तो फिर ट्रेडर्स के लिए मामला फंस जाता है. क्योंकि ट्रेडर्स तो शेयर पहले ही बेच चुके होते हैं, उन्हें अब उसकी डिलिवरी खरीदार को देनी होती है, जो कि वो नहीं कर पाते हैं. ऐसे में ये शेयर ऑक्शन मार्केट में चले जाते हैं. बिल्कुल यही चीज Groww में हुई है. जब शेयर ऑक्शन विंडो में जाते हैं तो आमतौर पर वो प्रीमियम पर ही सेटल होते हैं. जिससे ट्रेडर्स को भारी नुकसान होता है. 

ऑक्शन से क्या हुआ? 
ऑक्शन एक तरह से उन ट्रेडर्स को दंड देने जैसा है, जिन्होंने वादा किया था कि डिलिवरी देंगे, लेकिन नहीं दे पाए. इसलिए एक्सचेंज आगे आता है और इस पूरे रायते को समेटता है, जिसकी भरपाई उन ट्रेडर्स को करनी होती है. इसमें होता ये है कि एक्सचेंज अगले दिन अलग से एक ऑक्शन की एक विंडो खोलता है. एक्सचेंज उतने ही शेयर्स खरीदने की कोशिश करता है, जिनकी डिलिवरी देने में ट्रेडर्स फेल हो गए और फिर उन खरीदारों को दे देता है, जो उनको लेना चाहते थे. अब ये लग रहा होगा कि इसमें क्या बुरा हुआ. जी, हुआ ये कि जिस भी भाव पर ऑक्शन सेटल होगा,  ट्रेडर्स को उसी भाव को चुकाना होगा. अगर भाव ज्यादा बढ़ गया तो ट्रेडर्स को बहुत बड़ा नुकसान होगा. इतना ही नहीं, उन्हें 20% या 1 लाख रुपये तक की पेनल्टी जो भी ज्यादा हो चुकानी पड़ेगी, यानी ऐसे ट्रेडर्स को अपना वादा नहीं निभाने पर दोहरी मार झेलनी पड़ेगी.  ये “शॉर्ट स्क्वीज” का क्लासिक केस है, जिसमें शॉर्ट सेलर्स को मजबूरन ऊंचे प्राइस पर कवर करना पड़ा, जिससे प्राइस और चढ़ा. 

इसको एक उदाहरण से समझते हैं 
- मान लीजिए एक ट्रेडर ने Groww के 1000 शेयर 100 रुपये के भाव पर शॉर्ट किए
- लेकिन शेयर तो 150 के पार चला गया, जिससे ट्रेडर उसे वापस नहीं खरीद सके 
- अगले दिन अब ये शेयर ऑक्शन में चले गए, ऑक्शन 170 रुपये पर सेटल हुआ 
- ट्रेडर ने जो 1,00,000 के भाव पर शॉर्ट किया था उसे अब 1,70,000 रुपये देने होंगे
- यानी ट्रेडर को सीधा 70,000 रुपये का फटका, पेनल्टी अलग से लगेगी 

Short Squeeze क्या होता है?
इस पूरी कहानी में ये शब्द भी आया, इसको भी समझ लीजिए. देखिए जब कोई शेयर तेजी से ऊपर भागने लगता है, तो जिन लोगों ने भी शॉर्ट किया हुआ होता है, उनको डर लगता है कि कहीं बहुत बड़ा नुकसान न हो जाए, वो सब एक साथ खरीदने के लिए दौड़ते हैं, ऐसे में वो ऊंचे से ऊंचे प्राइस पर शेयर खरीदते चले जाते है. मामला तब फंस जाता है जब इस पैनिक खरीदारी में सप्लाई कम होती है. इसी हालात को Short Squeeze कहा जाता है. 

अब आगे क्या?
19 नवंबर को स्टॉक 10% गिरकर लोअर सर्किट हिट कर चुका 169.89 पर बंद हुआ. ये प्रॉफिट बुकिंग और शॉर्ट कवरिंग खत्म होने का असर है. यह गिरावट इसके IPO प्राइस 100 रुपये से लगभग 94% की तेजी के बाद आई, जिसमें मंगलवार, 18 नवंबर 2025 को शेयर 193.91 रुपये के रिकॉर्ड हाई  को छू गया और लगभग 1.19 लाख करोड़ रुपये के मार्केट कैप तक पहुंच गया.

अब आगे नजर इसके दूसरी तिमाही नतीजों पर रहेगी जो कि 21 नवंबर को आ रहे हैं. 10 दिसंबर को 1-महीने का लॉक-इन खत्म हो रहा है, इसमें 14.92 करोड़ शेयर्स (2% इक्विटी) बाजार में आएंगे, सप्लाई बढ़ेगी, प्राइस पर दबाव बन सकता है. 

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